बाणियां और जाट का एक मस्त मखोल / Baniye Or Jaat Ka Deshi Makhol
ऐसी कहावत है कि बनियां के पास एक नहीं, 52(बुद्धि) दिमाग होते हैं ।
एक पुरानी बात है कि एक जाट एक दूसरे गांव के बनिया से कभी-कभी ब्याज पर पैसे लेआ करदा और बनियां
की सूदखोरी से परेशान था । एक बार जाट की 14-15 साल की लड़की का बीमारी से देहान्त हो गया और जाट
को सेठजी से कुछ और कर्ज लेना पड़ा ।
फिर हुआ यूं कि कुछ दिन बाद बनियां की लड़की, जिसका नाम “परमेसरी” था और जो लगभग उसी उम्र (14-15साल) की थी, वो भी किसी बीमारी के कारण चल बसी । उसकी 13वीं के दिन जाट शोक प्रकट करने के लिए उस सेठ के घर चला गया ।उस समय बनियां घर में नहीं था । सेठानी भोली-भाली थी - जाट ने उसको एक तरफ ले जा कर कहा : "सेठानी जी, मैं तो अपनी लड़की से कल स्वर्ग में मिलने गया था, वो तो अब मौज में है पर परमेसरी बेचारी परेशान है ।
वो कह रही थी कि वो अपने जेवर तो धरती पर ही छोड़ आई और उसकी दूसरी सहेलियां सजी-संवरी घूमती हैं और मेरे को यह कहने लगी, कि मेरी मां से कह देना कि मेरे जेवर भिजवा दे । अगर आप उसके जेवर मुझे
दे-दें तो मैं अगली बार वहां उसके पास पहुंचा दूंगा" । बेचारी सेठानी ने जाट को जेवर दे दिये और जाट उसको राम राम कहकर अपने गांव की तरफ पैदल चलता बना।
थोड़ी देर के बाद जब बनिया घर आया तो सेठानी ने सारा किस्सा बता दिया । बनियां समझ गया कि चौधरी तो सेठानी का उल्लू बना गया और अपनी घोड़ी पर सवार होकर उसी तरफ भागा । बनियां को घोड़ी पर आता देखकर जाट खेतों की तरफ भाग गया और एक पेड़ पर चढ़ गया । बनियां ने घोड़ी पेड़ के नीचे रोक ली और जाट से जेवर मांगे ।
जाट ने जवाब दिया : “सेठ जी, मैने कोई चोरी तो की नहीं है, सेठानी ने अपने आप ये जेवर मुझे दिये हैं । अगर आप इस पेड़ पर चढ़ सकते हो तो ऊपर आकर अपने जेवर ले जाओ” ।
बनियां बेचारा जोर लगाकर पेड़ पर तो चढ़ गया पर बुरी तरह थक गया । मौका देखकर जाट ने नीचे खड़ी हुई उसकी घोड़ी पर छलांग लाई और घोड़ी को लेकर भागने लगा ।
बनियां ने देख लिया कि अब तो घोड़ी भी हाथ से गई - फिर सोचा कि जाट के हाथों अपना अपमान करवाने की बजाय क्यों ना कुछ पुण्य ही कमा लिया जाये !
बनियां ने जोर से आवाज दी :-
"अड़ चौधड़ी - या घोड़ी परमेसरी ताहीं दे दिये और उस-तैं बता दिये कि तेरी मां
नै तै जेवर भेजे सैं और बाप नै घोड़ी ।
एक पुरानी बात है कि एक जाट एक दूसरे गांव के बनिया से कभी-कभी ब्याज पर पैसे लेआ करदा और बनियां
की सूदखोरी से परेशान था । एक बार जाट की 14-15 साल की लड़की का बीमारी से देहान्त हो गया और जाट
को सेठजी से कुछ और कर्ज लेना पड़ा ।
फिर हुआ यूं कि कुछ दिन बाद बनियां की लड़की, जिसका नाम “परमेसरी” था और जो लगभग उसी उम्र (14-15साल) की थी, वो भी किसी बीमारी के कारण चल बसी । उसकी 13वीं के दिन जाट शोक प्रकट करने के लिए उस सेठ के घर चला गया ।उस समय बनियां घर में नहीं था । सेठानी भोली-भाली थी - जाट ने उसको एक तरफ ले जा कर कहा : "सेठानी जी, मैं तो अपनी लड़की से कल स्वर्ग में मिलने गया था, वो तो अब मौज में है पर परमेसरी बेचारी परेशान है ।
वो कह रही थी कि वो अपने जेवर तो धरती पर ही छोड़ आई और उसकी दूसरी सहेलियां सजी-संवरी घूमती हैं और मेरे को यह कहने लगी, कि मेरी मां से कह देना कि मेरे जेवर भिजवा दे । अगर आप उसके जेवर मुझे
दे-दें तो मैं अगली बार वहां उसके पास पहुंचा दूंगा" । बेचारी सेठानी ने जाट को जेवर दे दिये और जाट उसको राम राम कहकर अपने गांव की तरफ पैदल चलता बना।
थोड़ी देर के बाद जब बनिया घर आया तो सेठानी ने सारा किस्सा बता दिया । बनियां समझ गया कि चौधरी तो सेठानी का उल्लू बना गया और अपनी घोड़ी पर सवार होकर उसी तरफ भागा । बनियां को घोड़ी पर आता देखकर जाट खेतों की तरफ भाग गया और एक पेड़ पर चढ़ गया । बनियां ने घोड़ी पेड़ के नीचे रोक ली और जाट से जेवर मांगे ।
जाट ने जवाब दिया : “सेठ जी, मैने कोई चोरी तो की नहीं है, सेठानी ने अपने आप ये जेवर मुझे दिये हैं । अगर आप इस पेड़ पर चढ़ सकते हो तो ऊपर आकर अपने जेवर ले जाओ” ।
बनियां बेचारा जोर लगाकर पेड़ पर तो चढ़ गया पर बुरी तरह थक गया । मौका देखकर जाट ने नीचे खड़ी हुई उसकी घोड़ी पर छलांग लाई और घोड़ी को लेकर भागने लगा ।
बनियां ने देख लिया कि अब तो घोड़ी भी हाथ से गई - फिर सोचा कि जाट के हाथों अपना अपमान करवाने की बजाय क्यों ना कुछ पुण्य ही कमा लिया जाये !
बनियां ने जोर से आवाज दी :-
"अड़ चौधड़ी - या घोड़ी परमेसरी ताहीं दे दिये और उस-तैं बता दिये कि तेरी मां
नै तै जेवर भेजे सैं और बाप नै घोड़ी ।