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अस्थमा (दमा) का घरेलू उपाय / Asthma (Dama) Ka Gharelu Upchar

दमा आज की गम्भीर बिमरिओं में से एक है। अगर सही तरीके से दवाइयों या जडीबुटी का प्रयोग करें तो इसे मुक्ति पाई जा सकती है। लेकिन कुछ समय तक ही इससे राहत मिल पाएगी। वैसे अस्थमा (Asthma) एक ग्रीक शब्द ásthma "panting" से बना है जिसका अर्थ है - 'जल्दी-जल्दी साँस लेना' या 'साँस लेने के लिए जोर लगाना'। यह श्वसन मार्ग का एक आम सूजन (disease) वाला रोग है। जिससे श्वसन में बाधा -मतलब सास लेने में परेशानी होती है। दमा (अस्थमा) एक गंभीर रोग है, जो साँस लेने की नलिकाओं को प्रभावित करता है जिससे सांस लेने में समस्या आती है। दमा  आनुवांशिक होता है या फिर पर्यावरणीय कारकों या कारणों की वजह से होता है।



दमा निदान या अस्थमा रोग से मुकती उसके लक्षणों के ऊपर निर्भर करती है। दमा का उपचार  समय के साथ और उपचार के प्रति प्रतिक्रिया और स्पाइरोमेट्री पर आधारित या निर्भर करती है। अस्थमा चिकित्सीय रूप से लक्षणों की आवृत्ति, एक सेकेन्ड में बलपूर्वक निःश्वसन मात्रा (FEV1) और शिखर निःश्वास प्रवाह दर के आधार पर वर्गीकृत किया गया है। श्वास नलिकाएं फेफड़े से हवा को अंदर-बाहर करने का काम करती है। दमा होने पर इन नलिकाओं की भीतरी दीवार में सूजन आ जाती है। यह सूजन नलिकाओं को बेहद संवेदनशील बना देता है और हवा जाने का रास्ता बंद कर देती है जिससे रोगी सांस नही ले पाता है इसी कारण मरीज को किसी भी बेचैन करनेवाली चीज के स्पर्श से यह तीखी प्रतिक्रिया करता है। जब सांस लेने की नलिकाएं प्रतिक्रिया करती हैं, तो उनमें सिकुड़ (संकुचन) जाती है और उस स्थिति में फेफड़े में हवा की कम मात्रा जाती है। इसी कारण रोगी को खांसी आती है,  नाक बहती है, छाती कड़ी हो जाती है,  रात और सुबह में सांस लेने में तकलीफ आदि जैसे लक्षण होते हैं।

     दमे का दौरा पड़ने से श्वास नलिकाएं पूरी तरह बंद हो सकती हैं, जिससे शरीर के महत्वपूर्ण अंगों को आक्सीजन की आपूर्ति बंद हो सकती है। यह चिकित्सकीय रूप से आपात स्थिति है। दमे के दौरे से मरीज की मौत भी हो सकती है। दमा को ठीक नहीं किया जा सकता, लेकिन इस पर नियंत्रण किया जा सकता और आराम और सुकून की ज़िंदगी जी जा सकती है।  ये आर्टिकल इसीलिए लिख रहा अस्थमा ग्रसित इंसान भी आराम से आयुर्वेद के नुस्खों अपना कर आराम से ज़िंदगी जी सकता है।



 अस्थमा दमा होने के लक्षण-

दमा या तो धीरे-धीरे उभरता है या अचानक एकाएक भड़कता है। जब दमा या दमा एकाएक भड़कता है तो उससे पहले खाँसी का दौरा होता है, किंतु जब दमा धीरे-धीरे उभरता है तो उससे पहले आमतौर पर श्वास प्रणाली में संक्रमण हो जाया करता है। दमा का दौरा जब तेज होता है तो दिल की धड़कन और साँस लेने की रफ्तार दोनों बढ़ जाती हैं तथा रोगी बेचैन व थका हुआ महसूस करता है। उसे खाँसी आ सकती है, सीने में जकड़न महसूस हो सकती है, बहुत अधिक पसीना आ सकता है और उलटी भी हो सकती है। दमे के दौरे के समय सीने से आनेवाली साँय-साँय की आवाज तंग श्वास नलियों के भीतर से हवा बाहर निकलने के कारण आती है। दमा के सभी रोगियों को रात के समय, खासकर सोते हुए, ज्यादा कठिनाई महसूस होती है।
       (1)    सामान्यतया दमा अचानक शुरू होता है
       (2)    दमा यानि साँस किस्तों मे आता है
       (3)    दमा रात या सुबह बहुत तेज होता है
       (4)    दमा ठंडी जगहों पर या व्यायाम करने से या भीषण गर्मी में तीखा होता है
       (5)    दवाओं के उपयोग से ठीक होता है, क्योंकि इससे नलिकाएं खुलती हैं
       (6)    बलगम के साथ या बगैर खांसी होती है
       (7)    सांस फूलना, जो व्यायाम या किसी गतिविधि के साथ तेज होती है
       (8)    शरीर के अंदर खिंचाव (सांस लेने के साथ रीढ़ के पास त्वचा का खिंचाव)


अस्थमा होने कारण:-

दमे के कुछ प्रमुख कारण जिनसे अस्थमा रोग हो हो सकता है-

तिलचट्टे से,धूलकण से,सुगंधित उत्पाद से,गैस्ट्रो इसोफीगल भाटा से,मोटापे से भी दमा हो सकता,पेड़ और घास के पराग कण से,दीमक से  (घरों में पाये जाते हैं),सिगरेट का धुआं से,वायु प्रदूषण से,पेंट या रसोई की तीखी गंध से,विशेष रसायन या धूल जैसे अवयव से,मजबूत भावनात्मक मनोभाव (जैसे रोना या लगातार हंसना) और तनाव से, ठंडी हवा या मौसमी बदलाव से,एस्पिरीन और अन्य दवाएं से,खाद्य पदार्थों में सल्फाइट (सूखे फल) या पेय (शराब) से,जानवरों से (जानवरों की त्वचा, बाल, पंख या रोयें से),

पारिवारिक इतिहास से-
   तंबाकू के धुएं से भरे माहौल में रहने वाले शिशुओं को दमा होने का खतरा बहुत ज्यादा होता है। यदि गर्भावस्था के दौरान कोई महिला तंबाकू के धुएं के बीच रहती है, तो उसके बच्चे को दमा होने का खतरा होता है।
दमा ऐसे सूक्ष्म तत्वों से हो सकता है जिन्हे आँखों से देख पाना असम्भव है, उदाहरणार्थ- परागकण। कुछ लोगों को यह रोग शयनकक्ष या स्नान कक्ष में भी हो सकता है जहाँ बहुत छोटे-छोटे जीवाणु, जैसे- डस्टमाइट, कम्बलों, पर्दो व दरियों के धूल कणों से। प्रायः देखा गया है कि दमा के रोगी पालतू कुत्तों, बिल्लियों, खरगोष आदि बालदार जानवरों के साथ नहीं रह सकते। छोटे-छोटे कण (स्पोर्ष) जो गोल्ड्स व फन्गस के होते हैं, वे भी दमा की समस्या पैदा कर देते हैं।
कुछ दमा के रोगी खाद्य पदार्थों, जैसे-दूध, अंडे, मछली, ईस्ट या भोजन सुरक्षित रखने वाले प्रेजरवेटिव्स (जैसे-सल्फर डाई ऑक्साइड) से एलर्जिक होते हैं। वे ऐसे भोजन को कभी-कभी सूँघकर या खाने के बाद रोग से ग्रस्त हो जाते हैं। कुछ लोग गीले रंगों, वाहनों के धुएँ, सिगरेट के धुएँ व कुछ औषधियों से भी रोग ग्रस्त हो जाते हैं। कुछ तत्व जो श्वसन तंत्र को उत्तेजित करते हैं, उनमें एलर्जिक क्रियाएँ पैदा कर देते हैं। मौसम के तापमान का परिवर्तन, अत्यधिक शारीरिक श्रम, भावनात्मक उलझनें, अत्यधिक हँसी भी दमा का दौरा उत्पन्न कर सकते हैं।

पर्यावरणीय और जीन संबंधी पारस्परिक क्रियाओं के मिलान या संयोजन से अस्थमा रोग हो जाता है. पर्यावरणीय कारक और जीन संबंधी समस्या ही इसकी गंभीरता और उपचार के प्रति प्रतिक्रिया को प्रभावित करते हैं। ऐसा माना जाता है  कि अस्थमा की दर में में हाल में आयी वृद्धि बदलती एपिजेनिटिक (पैतृक कारक जो डीएनए से संबंधित होने के अतिरिक्त होते हैं वो है.) तथा बदलते पर्यावरण के कारण  से भी अस्थमा रोग तेजी से बढ़ रहा है.


एलर्जी Allergy व दमा Asthma

ऐसे तत्वों को, जो एलर्जी (Allergy) उत्पन्न करते हैं, एलर्जेन कहा जाता है। स्वस्थ शरीर में इस प्रतिक्रिया को रोकने की क्षमता एक विषेष तन्त्र द्वारा होती है जिसे ‘इम्यून सिस्टम’ कहते है। इस तन्त्र का प्रमुख तत्व शरीर की श्वेत रक्त कणिकाएँ(डब्लू0 बी0 सी0) होती हैं। ये कणिकाएँ शरीर में प्रवेष करने वाले सभी एलर्जेन (बाहर से हमला करने वाले रोगाणु) से निपटने को तैयार रहती हैं तथा जो तत्व बाहरी होते हैं, उनके विरूद्ध एक प्रोटीन तत्त्व (एन्टीजेन) को तोड़ने में सहायक होते हैं। हमारे शरीर में ऐसी बहुत-सी एन्टीबाडीज होती हैं जो उन बाह्य तत्त्वों के कुप्रभावों को नष्ट कर देती हैं उदाहरणार्थ- मीजेल्स (खसरा)। वाइरस का रोग होने पर शरीर में इसकी एन्टीबाडी बन जाती है जो पुनः इसके संक्रमण में रोग को उत्पन्न नहीं होने देती। परन्तु कुछ बीमारियाँ जैसे- फ्लू, जुकाम के वाइरस सदैव परिवर्तित होते रहने के कारण पूर्व की बनी एन्टीबाडी उपयोग नहीं सिद्ध होती, अतः बार-बार फ्लू और जुकाम होता रहता है।
छमा (chama) एक प्रकार की एलर्जी (Allergy)  क्रिया है। जब यही क्रिया त्वचा (skin) में होती है तब उसे एक्जिमा कहते हैं। जब आँख व नाक में हो तो ‘हे फीवर’ और जब श्वसन तन्त्र में हो तो दमा कहते है। वास्तव में शरीर के अन्दर उक्त अंगों में एक जैसी ही क्रियाएँ होती है। एलर्जी जब गम्भीर हो जाती है तो उसे एनाफाइलैक्सिस’ कहा जाता है। यह स्थिति जीवन के लिए चुनौती होती है क्योंकि इसमें वायु तनत्र केवल सिकुड़ता ही नहीं, बल्कि अन्दर सूज भी जाता है, और रोगी निष्चेत होने लगता है।
एलर्जी प्रायः उन लोगों में बहुधा होती है जिनके वंष में दमा, एक्जिमा, ‘हे फीवर’ जैसी बीमारियाँ होती रहती है। ऐसा दमा किसी भी आयु में कभी भी किसी भी कारण से हो सकता है और सदैव के लिए ठीक भी हो सकता है। ऐसा कभी-कभी हार्मोन्स के बढ़ने व घटने के कारण भी होता है। भावनात्मक परेषानियाँ, जैसे- अत्यधिक डर, परीक्षाएँ, अथक परिश्रम भी दमा को गम्भीर करने के कारणों में अपनी भूमिका प्रदान कर सकता है।
फेफड़ों को हवा देने वाली नलियाँ छोटी-छोटी माँस-पेषियों से ढकी रहती है। इन माँस-पेषियों में आक्षेप होने के कारण जो साँस लेने में कष्ट होता है और गला साँय-साँय करता है, उसे दमा (ष्वास रोग) कहते है। आरम्भ में दमा का दौर कम और बहुत दिनों से होता है। धीरे-धीरे पुराना होने पर नितय होने लगता है। यह बड़ी कष्टसाध्य और पुरानी बीमारी है। दमा का दौरा होने पर शान्त करने का उपचार करना चाहिए और फिर चिकित्सा पुनः दमा न हो, इसकी व्यवस्था करनी चाहिए। केवल दवाइयों से ही दमा को ठीक कर देने की आषा गलत है। आहार-आचार व प्राकृतिक नियमों का पालन दमा से स्थाई रोग-मुक्ति के लिए आवष्यक है। दमा के रोगी की छाली का सेक करने से रोगी को आराम मिलता है। रक्त में ईसनोफीलिया की वृद्धि से प्रायः सूखा दमा होता है।



दमा से बचने के उपाय-

पेट साफ रखें, कब्ज न होने दें। ठण्ड से बचें। देर से पचने वाली गरिष्ठ चीजें न खायें। शाम का भोजन सूर्यास्त से पहले, शीघ्र पचने वाला और कम मात्रा में करें। गरम पानी पीयें। शुद्ध हवा में घूमने जायें। धूम्रपान न करें, क्योंकि इसके धुएँ से दौरा पड़ सकता है। प्रदूषण से दूर रहें खासतौर से औद्योगिक एवं वाहन धुएँ से। धूल, धुएँ की एलर्जी, सर्दी एवं वायरस से बचें। मनोविकार, तनाव, कीटनाषक दवाओं, रंग-रोगन, लकड़ी के बुरादे से बचें। मूँगफली, चॉकलेट से परहेज करें, फास्ट-फूड न लें, अपने वजन को कम करें। नियमित रूप से योगाभ्यास एवं कसरत करें। बिस्तर पर पूर्ण आराम एवं मुँह के द्वारा धीरे-धीरे साँस लें।



अस्थमा (दमा) के घरेलु उपचार:-
 यहाँ वर्णित भोजन सम्बन्धी चीजें नियमित कुछ महीने निरन्तर प्रयोग कर सकते है।

खजूर- दमा में खजूर लाभ करती है।
इन्फ्रोरेड-रेज- ये किरणों दमा में लाभप्रद हैं।
पुदीने का अर्क इन रोगों पर विषेष प्रभावी है।
शहतूत- शहतूत या इसका शर्बत कफनाषक है।
करेला- करेले की सब्जी खाने से दमे में लाभ मिलता है।
प्याज के रस में शहद मिलाकर सूँघना भी लाभदायक है।
इलायची छोटी- छोटी इलायची खाना दमा में लाभदायक है।
तरबूज- दमा के रोगियों को तरबूज का रस नहीं पीना चाहिए।
दूध- दूध में पाँच पीपल डालकर गर्म करें और शक्कर डालकर नित्य सुबह-षाम पीयें।
धनिया- धनिया व मिश्री पीस कर चावलों के पानी के साथ पिलाने से लाभ होता है।
मौसमी- मौसमी के रस में, रस का आधा भाग गर्म पानी, जीरा, सौंठ मिलाकर पिलायें।
छुआरा- छुआरा गरम है। फेफड़ों और छाती को बल देता है। कफ व सर्दी में लाभदायक है।
प्याज- प्याज को कूटकर सूँघने से खाँसी, गले के रोग, टान्सिल, फेफड़े के कष्ट दूर होते हैं।
कॉफी- दमा का दौरा पड़ने पर गरमा-गरम कॉफी (बिना दूध, चीनी की) पीने से आराम मिलता है।
फिटकरी- आधा ग्राम पिसी र्हुअ फिटकरी शहद में मिलाकर चाटने से दमा, खाँसी में आराम आता है।
जौ- दमा में 6 ग्राम जौ की राख, 6 ग्राम मिश्री- इन दोनों को पीसकर सुबह-षाम गरम पानी से फँकी लें।
अंगूर- अंगूर खाना बहुत लाभदायक है। यदि थूकने में रक्त आता हो तब भी अंगूर खाने से लाभ होता है।
पानी- दमा का दौरा पड़ने पर हाथ-पैर गरम पानी में डुबोकर दस मिनट रखें। इससे बहुत आराम मिलता है।
सरसों का तेल- खाँसी, श्वास, कफ जमा हो तो सरसों के तेल में सेंधा नमक मिलाकर मालिष करें। लाभ होगा।
मेथी- दमा हो तो चार चम्मच मेथी एक गिलास पानी में उबालें। आधा पानी रहने पर छानकर गर्म-गर्म ही पीयें।
शलगम- शलगम, बन्दगोभी, गाजर और सेम का रस मिलाकर सुबह-षाम दो सप्ताह तक पीने से दमा में लाभ होता है।
चना- रात को सोते समय भुने, सिके हुए चने खाकर ऊपर गरम दूध पीने से श्वास नली में जमा हुआ कफ निकल जाता है।
कुलथी- कुलथी की दाल बनाकर दिन में बार खाने से श्वास की बीमारी में काफी लाभ होता है। ऐसा कम-से-कम तीन माह तक करें।
गुड़- सर्द ऋतु में गुड़ और काले तिल के लड्डू खाने से दमा में लाभ होता है। दमा न होने पर भी इसके खाने से दमा नहीं होता है।
लौंग- लौंग मुँह में रखने से कफ आराम से निकलता है तथा कफ की दुर्गन्ध दूर हो जाती है। मुँह और साँस की दुर्गन्ध भी इससे मिटती है।
अंजीर- दमा जिसमें कफ-बलगम निकलता हो उसमें अंजीर खाना लाभकारी है। अससे कफ बाहर आ जाता है तथा रोगी को शीघ्र आराम भी मिलता है।
सेंधा नमक- सेंधा नमक एक भाग, देषी चीनी चार भाग, दोनों मिलाकर बारीक पीस लें। आधा चम्मच नित्य 3 बार सौ ग्राम गरम पानी से लेने से दमा में लाभ होता है।
केला- दमा के रोगियों को केला कम खाना चाहिए। ध्यान रखना चाहिए कि केला खाने से दमा बढ़ता हुआ पाया जाय तो केला नहीं खना चाहिए। दमे में केले से एलर्जी पायी जाती है।
गाजर-  दमा में गाजर अथवा इसका रस लाभदायक है। गाजर का रस 185 ग्राम, चुकन्दर का रस 150 ग्राम, खीरा या ककड़ी का रस 125 ग्राम मिलाकर पीने से दमा में अधिक लाभ होता है।
ईसबगोल- साल छः महीने तक लगातार दिन में दो बार ईसबगोल की भूसी की फँकी लेते रहने से सब प्रकार के श्वास रोग मिटते हैं। 6 मास से दो वर्ष तक पुराना दमा भी इससे जाता रहता है।
पोदीना- चौथाई कप पोदीने का रस इतने ही पानी में मिलाकर नित्य तीन बार पीने से लाभ होता है खाँसी, दमा इत्यादि विकारों पर पुदीना अपने ‘कफ-निस्सारक’ गुणों के कारण काफी अच्छा सिद्ध होता है।


पीपल- पीपल के पेड़ के गहरे हरे पत्ते धोकर छाया में सुुखा कर बारीक पीस लें। इसकी एक चम्मच पानी से सुबह-षाम दो बार फँकी लें। जब खाँसी आये तो एक चम्मच पीपल के पत्तों का चूर्ण दो चम्मच शहद में मिलाकर दो बार चाटें। खाँसी ठीक हो जायेगी।

हल्दी- दमा में कफ गिरने पर नित्य तीन बार 5 ग्राम हल्दी की फँकी गरम पानी से लें। श्वास रोगों में हल्दी बहुत लाभदायक है। हल्दी को बालू में सेककर पीसकर एक चाय चम्मच की मात्रा दो बार गरम पानी से दें। हल्दी हर प्रकार के श्वास-रोगों में लाभदायक है।

तुलसी- दमा के दौरे के समय ऐसा प्रयास करना चाहिए जिससे कफ पतला होकर निकले। कफ निकलने पर ही रोगी को आराम मिलेगा। तुलसी के रस में बलगम को पतला कर निकालने का गुण है। तुलसी का रस, शहद, अदरक का रस, प्याज का रस मिलाकर लेने से दमा में बहुत लाभ होता है। बच्चों के श्वास रोग में तुलसी के पत्तों का रस और शहद मिलाकर दें।

कैल्षियम- दमा में कैल्षियम प्रधान भोजन लाभ करता हैं इसकी दैनिक मात्रा 0.8 ग्राम है, लेकिन आवष्यकतानुसार अधिक मात्रा में भी ले सकते हैं। शरीर को जितने कैल्षियम की आवष्यकता होती है, सूखे मेवे, आँवला, गाजर, पनीर में पाया जाता है। अस्थमा के 80 प्रतिषत रोगियों में अम्ल के लक्ष्ण पाए जाते हैं। दमा के रोगी अम्लपित्त के पाठ में बताई बातों का पालन करें।

विटामिन ई- दमा ठीक करने में इस विटामिन की अत्यधिक आवष्यकता है। यह रक्त कणों के निर्माण में लाभ करता है। वायु प्रदूषण के कारण शरीर में होने वाले हानिकारक तत्त्वों के प्रभाव को कम करने में सहायता देता है। इसकी दैनिक खुराक 15-20 मिलीग्राम है। यह अंकुरित गेहूँ, पिस्ता, सोयाबीन, सफोला तेल, नारियल, घी, ताजा मक्खन, टमाटर, अंगूर, सूखे मेवों में मिलता है।         

शहद- श्लेष्मीय, दुर्बल व्यक्ति जिनके फेफड़े श्लेष्मा से भरे रहते हैं और साँस लेना कठिन होता है, उनको प्याज का रस या प्याज को कूट-कूट कर गूदा बनायें, इसे शहद में मिलाकर देना पुराना नुस्खा है। दमा और फेफड़े के रोग शहद सेवन करने से दूर होते है। शहद फेफड़ों को बल देता है। खाँसी, गले की खुष्की तथा स्नायु कष्ट दूर करता है। छाती में धरर-धरर दूर होती है। केवल शहद भी ले सकते है।

नीबू- दमा का दौरा पड़ने पर गरम पानी में नीबू निचोड़कर पिलाने से लाभ होता है। दमा के रोगी को नित्य एक नीबूए दो चम्मच शहद और एक चम्मच अदरक का रस, एक कप गरम पानी में पीते रहने से बहुत लाभ होता है। यह दमा के दौरे के समय भी ले सकते हैं। यह हृदय रोग, ब्लड-प्रेषर, पाचन संस्थान के रोग एवं उत्तम स्वास्थ्य बनाये रखने के लिए भी लाभदायक है। नीबू के रस में शहद मिलाकर चाटने से बच्चों का साँस फूलना बन्द हो जाता है।