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आँखों की देखभाल कैसे करें / Aankhon Ke Rogon Ka Gharelu Upchar


प्रिय दोस्त, आज हम आपको आँखों के बारे में कुछ रोचक सत्य बताने जा रहे हैं जो हम सभी को जानने जरूरी हैं। मानव नेत्र शरीर का सबसे कोमल अंग है जो देखने के लिए व प्रकाश के लिए क्रिया करता है। आँख वह अंग है जिसकी सहायता से हम देखते हैं। मानव नेत्र से करोडो रंगों को पहचाना जा सकता है। नेत्र शरीर की प्रमुख ज्ञानेंद्रिय में से एक हैं जिससे रूप-रंग का चिन्हित करने की शक्ति होती है। ये सभी जानतें हैं कि मनुष्य के दो नेत्र होते हैं। प्रत्येक नेत्र 2.5 सें.मी. व्यास का गोलाकार पिंड होता है। यह सर के नेत्रगर्त(आँख के होल) में स्थित होता है और आँख का छोटा सा भाग ही बाहर से दिखाई पड़ता है। इस भाग को अग्रखंड( बाहरी आँख) कहते हैं। इस खंड का मध्य भाग कॉर्निया है, जो पारदर्शक होती है।


 

क्या आपको पता है कि नेत्रगोलक की तीन परतें होती हैं। बाहरी परत (श्वेत पटल) घने संयोजक तंतुओं की होती हैं, जो अंदर की परतों की रक्षा और नेत्रपेशियों की कंडराओं के संन्निवेश को सुविधा प्रदान करती है। इस पटल का अग्रभाग पारदर्शक कॉर्निया है और बाकी हिस्सा श्वेत अपारदर्शी होता है। आँख में कंजंक्टाइवा नामक श्लेष्मिक झिल्ला के पीछे से इसी की सफेदी झलकती है। मध्य परत है श्यामवर्ण रंजित पटल। इसके दो भाग होते हैं : पश्च दो तिहाई, कोरायड, जो केवल रक्तवाहिनियों का जाल होता है और अग्र तिहाई, अपेक्षाकृत स्थूल भाग, जिसे रोमक पिंड (सिलियरी बॉडी) कहते हैं। यह वृत्ताकार पिंड आगे की और आइरिस या परितारिका पट्ट बनाता है। आइरिस के बीच एक छिद्र होता है, जिसे प्यूपिल या नेत्रतारा कहते हैं। यह छोटा बड़ा हो सकता है तथा इसी में से प्रकाश नेत्र के पश्चखंड में प्रवेश करता है। भीतरी परत, तंत्रिका के रेशों और कोशिकाओं से निर्मित, दृष्टिपटल होती है।
इन परतों के आलावा रोमक पिंड से निलंबन स्नायु द्वारा सलंग्न ठीक आइरिस के पीछे लेंस अवस्थित होता है। कॉर्निया और लेंस के अग्रपृष्ठ के बीच का स्थान अग्रकक्ष और आइरिस तथा लेंस के बीच का पतला वृत्ताकार स्थान पश्चकक्ष कहलाता है। इन पक्षों में पतला जलीय द्रव नेत्रीद होता है। लेंस के पश्च भाग में क्रिस्टलीय पारदर्शी श्लिषि (जेल) होती हैं, जिसे सांद्र द्रव कहते हैं।


आँखों में होने वाले प्रमुख रोग:-

रतौंधी- सूर्यास्त से सूर्योदय तक(यानि रात में) बिलकुल न देख सकना रतौंधी रोग कहलाता है।
रतौंधी होने के कारण- विटामिन 'ए' और विटामिन 'बी' की कमी के कारण  रतौंधी रोग होता है।
गुहेरी होने कारण- गुहेरी रोग  विटामिन 'ए' और विटामिन 'डी' की कमी से होता है और अपच,एसिडिटी, कब्ज से भी निकलता है।
गुहेरी- गुहेरी रोग में आँख की पालक के ऊपर व नीचे एक तरह की फुंसी होती है। यह एक या उसे भी ज्यादा भी हो सकती है। कभी कभी एक ठीक होने पर दुरी निकल आती है। इसमें बहुत दर्द होता है और कभी कभी इसमें पीप(रेसा) भी निकलती है।
आँखे दुखने के कारण :-
धुँआ लगने से भी दर्द होता है।
ठण्ड लग जाने से आँखे दर्द करती है।
ओस लगने से आँख में दर्द हो जाता है।
खसरा रोग होने से भी आँख में दर्द होता है।
आँख में चोट लग जाने से भी आँख दर्द करती है।
चोट लग जाने कारन भी आँखे दर्द करने लगती है।
आँखों में धूल चले जाने से भी आँखों में दर्द होता है।
संक्रामक रोग हो जाने से भी आँखों में दर्द हो जाता है।
चेचक सूजाक रोग होने से भी आँख का दर्द होना शुरू हो जाता है.इसमें आँखे लाला शोथ-युक्त होती है। इसमें रड़कन, जलन और पीड़ा होना, पानी बहना, आँखे खोलने, काम करने व देखने से पानी बहुत बहता है। और दर्द भी बहुत है। कभी कभी गाढ़ा स्राव निकलता है, जो रात में इस्काठे हो जाता है जिससे आँखे परस्पर जुड़ जाती है।

मोतियाबिंद:-
जन्म से ही आँखों में शोथ होना, आँखों की रचना में कमी रहना, बुढ़ापा, आँखों में चोट लग्न, घाव हो जाना, आँखों पर चिरकाल तक तीव्र प्रकाश व गर्मी का प्रभाव पड़ना, मधमेह, घटिया, अत्यधिक क्वीनीन खाना, हाथ पैर से निकलता पशीना अचानक बंद हो जाना आदि कारण से मोतियाबिंद रोग हो जाता है।
मोतियाबिंद के लक्षण :-
मोतियाबिंद दो प्रकार का होता है -एक कोमल और दूसरा सख्त मोतियाबिंद। कोमल मोतियाबिंद  का रंग नीला होता है। और यह बाँकपन से लेकर 30-35 साल की उम्र तक होता है। सख्त मोतियाबिंद बुढ़ापे में और धुमैला रंग का होता है। एक या दोनों ही अंको में धीरे धीरे कई महीनो या सालो में पैदा होता है। इसमें धीरे धीरे देखने की ताकत गायब या कम होती जाती है।


आँखों के सभी रोगो का घरेलु व आयर्वेदिक उपचार :-
       
यदि आप सप्ताह में 3-4 बार सुबह सुबह बिना कुछ खाए पिए अपना थूक (बासी थूक) आँखों में डाल लें तो आपको कभी भी आँखों में कोई रोग नहीं होगा । यह एक राम बाण इलाज है ।
पान की पती का रस आँखों में लगाने से रतौंधी की बीमारी ठीक होती है।
तुलसी के पतों का रस आँख में अनजान की तरह लगाने से नेत्र ज्योति बढ़ती है।
जिनकी आँखों में जलन व लालिमा रहती है उनको ग्वार पाठे का ठंडा गुदा आँखों पर रखना चाहिए।  
त्रिफला चरण को शहद में मिलकर रात को सोते समय खाने से आँखों की बहुत सी बीमारी दूर हो जाती है।
बथुए का रस रोगी को पिलाये और छने हुए रस की 3-3 बूंदे आँखों में टपकाए. रतौंधी में बहुत फायदा होगा।
रीठे के छिलके को पानी में भिगोकर रखे, फिर उसे उबालकर, खूब छानकर किसी शीशी में भर ले और रात्रि को योते समय 1-1 सलाई आँख में डालने से रतौंधी की बीमारी ठीक होती है।       
आँखों में शहद नियमित डालते रहने से कोई भी रोग नही होता है. काला मोतियाबिंद भी शहद डालने से ठीक हो जाता है।
नींबू : 9 भाग छोटी मक्खी का शहद ,1  भाग अदरक का रस ,1 भाग नींबू  का रस , 1  भाग सफ़ेद प्याज का रस ,सब मिलाकर छानकर एक बूँद सुबह -शाम लम्बे समय तक डालते रहने से मोतियाबिंद दूर हो जाता है।     
आँख की पलको में सूजन आने के बाद हलकी-से खुजली चलती है और फुन्शी निकल आति है, इसे गुहेरी या गोहरी कहते है।
यदि दाहिने आँख में गुहेहरी हो तो बाये पैर के और बायीं आँख में हो तो दायें पैर के अंगूठे के नाख़ून के निचे भीलवे के तेल की एक बारीक़ लकीर करके ऊपर से चुना लगा दे. गुहेरी ठीक हो जाएगी।
इमली के बीजो की गिरी पत्थर पर घिस कर लेप-सा बनाकर बहेरी पर लगाये इससे गुहेरी पर तुरंत ठंडक मिलेगी।
गोरखमुंडी के फूल जितने बिना पानी के निगल सकते है निगल जाये. जितने फूल निगले है उतने साल आँख दुखनी नही आएगी।
भुनी हुई सौंफ में 250 ग्राम में इतना ही देसी बुरा मिलाकर रोज रात में पानी या दूध से फाकी मारे. ये घरेलु उपचार नेत्र-ज्योतिवर्धक टॉनिक है।                 
बरगद की कोपले तोड़ने पर दूध निकलता है, वह दूध एक एक बून्द  आँख में  डालें इससे जाला, काम दिखाई देना, लाली, जलन  आदि रोग दूर होते है।
सत्यानाशी की टहनी को तोड़ने से जो पीला दूध निकलता है उसमे सलाई से आँख में डालें  आँखों रोग से रोता हुआ इंसान भी हसने लगेगा. फायदेमंद नुस्खा है।
आँवला को कूट कर 2 घंटे तक पानी में ओतने के बाद छानकर दिन में 3 बार इस जल की बुँदे आँख में डालें इससे नेत्र रोग या आँख के सभी प्रकार के रोग दूर हो जाते है।
बेल की पातियो का रास निकल कर बारीक़ कपडे से चन ले. 1-2 बुँदे आँख में डालने से आँख का दुखना, पीप आना, अंको में चुभन, पैदा शूल ठीक हो जाता है और साथ ही नेत्र जोति बढ़ती है।
आँख आने पर 100 ग्राम गुलाब जल में 100 ग्राम फिटकरी डालें। इस लोशन की 2-2 बूंदे सुबह शाम आँख में डालें तो आँखों की लाली, दर्द, चुभन, रड़कन, ठीक होकर आँखों में ठंडक पड़ जाती है।
एक १ ग्राम हरड़ प्रतिदिन सुबह ले. दोपहर में २ ग्राम  बहेड़ा  और रात को योते समय ४ नग आँवला ले इस आयर्वेदिक घरेलु उपचार का सेवन करने से धारीर लावण्ययुक्त, पुस्ट होता है और आँखों या नेत्र की रौशनी बढ़ती है।
लौकी का छिलका छाया में सुखा ले एक घरेलु चमत्कारी दवा बनकर तैयार हो जाएगी. इसे खरल में पीसकर बहुत बारीक़ कर ले. सुबह 3-3 सलाई दोनों आँखों में सुरमे की तरह लगाये थोड़े ही दिनों में आँखों की सारी समस्या या तकलीफे दूर हो जाएगी।
जरुरत के अनुसार काली मिर्च घी में भिगोकर रख दे और चाँदनी रात में खुले में रख दे। इसी प्रकार 3-4 दिन के बाद इन काली मिर्चो को मिश्री के साथ चबाकर खाए। 3 महीने इस नुस्खे का प्रयोग करे इससे आपकी आँखो की रौशनी ठीक हो जाएगी और साथ ही रौशनी बढ़ती जाएगी।