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कुष्ठ रोग क्या होता है और इसके आयुर्वेदिक उपाय क्या हैं ?

Hi Dosto,
हम देशी तरीके से कुष्ठ रोग को कोढ़ भी कहते हैं। कुष्ठ यानि कोढ़ एक संक्रामक रोग है, जो अन्य संक्रामक रोगों की तरह एक जीवाणु “माइक्रोबैक्टिरियम लेप्री" के द्वारा फैलता है। कुष्ठ यानि कोढ़ रोग पूर्व जन्म के पापों का फल नहीं है और नाही यह लाइलाज़ है। कुष्ठ यानि कोढ़ का प्रसारन तो वायु या जल के माध्यम से होता है और न ही यह वंशानुगत है। आज भी कुछ अज्ञानी कुष्ठ को वंशानुगत मानते है। मैंने भी कई लोगों से वंशानुगत कहते सुना है पर ये एक दम गलत है।



हमारे ज्ञानी महाराज के अनुसार :- कुष्ठ वंशानुगत नहीं होता है। यदि कुष्ठ रोगी के बच्चों को शुरू से ही उनसे दूर रख जाये तो रोग का प्रभाव संतान पर नहीं पड़ता है। कुष्ठ रोग रोगी के दीर्घकालीन व घनिस्ट सम्पर्क में रहने से कुछ लोग कुष्ठ रोग से संक्रमित हो सकते है। यह त्वचा का त्वचा से सम्पर्क अथवा रोगी के द्वारा पहने जाने वाले कपडे पहनने से और रोगी के प्रयक्त बर्तन में खाने से फली सकता है। प्रौढ़ों की तुलना में छोटे बच्चों में जल्दी फैलता है कुष्ठ रोग. रोगी के सम्पर्क में आने के २ से ५ साल तक की अवधि में स्वस्थ इंसान में कुष्ठ रोग विकसित होता है. कुष्ठ रोग किसी भी अवस्था में पूरी तरह ठीक हो जाता है। यह बात अलग है कि आरंभिक अवस्था में इसका उपचार आसानी से हो जाता है। चरमावस्था में इस रोग के कारण शरीर में कई प्रकार की विकृतियां उत्पन्न हो जाती हैं।



 कुष्ठ रोग में शरीर कीत्वचा पर एक या एक से अधिक चकत्ते बनजाते है। अथवा त्वचा पर कभी-भी चकत्ते पड़े बिना शरीर का कोई भाग सवेदनशील हो जाता है। चकत्ते त्वचा के रंग की अपेछा अधिक पीले या लाल होते है. चकत्ते में खुजली, जलन अथवा दर्द होने लगती है।

चकत्ते पीठ, नितंम्ब, जांघ, अथवा शरीरके किसी अन्य भाग पर बन सकते है। शुरआत में त्वचा के रंग व बनावट में साधारण सा दिखता है. गहरे रंग की त्वचा में तो यह परिवर्तन १-२ दाल तक बिलकुल भी दिखाई नहीं देता है। कुष्ठ रोग यह प्रकार कुष्ठ की प्रारंभिक अवस्था है । प्रारंभिक अवस्था में भी संक्रमण होता है। कुष्ठ रोग या कुष्ठ एक रोगाणु के कारण होता है। यह भी तपेदिक (टी.बी), पोलियोमायलिटिस, डिप्थेरिया आदि की तरह ही संचरणक्षम (संक्रामक-दूसरों को लगने वाला) रोग है परंतु बहुत ही कम फैलने वाला है। केवल ऐसे संक्रामित कुष्ठ रोगी जिनका बहुत दिनों से उपचार न हुआ हो उसके संपर्क में आने से कुष्ठ फैल सकता है।

कुष्ठ रोग की विकसित अवस्था के लक्षण - कुष्ठ रोग मंद गति से विकसितहोता है। इसलिए कई साल बादकुष्ठ निकलता है इसकेफलस्वरूप शरीरिक विकृतियाँ प्रकटहोती है. कुष्ठ रोग प्रारंभिकअवस्था में उपचारनहीं होता है कुष्ठ  रोग विकसित हो जाता है. और जल्दी जल्दी नए चकत्ते बनते जाते है.
कोहनी, घुटने, टखने और कलाई के चारो और त्वचा के नीचे की नसे भी रोग्रस्त हो जाती है. इसके अतरिक्त कान, नाक, आँख भी कुष्ठ रोग  की चपेट में आ जाते है. कुष्ठ रोग कीसंक्रमशीलता को काम करने और कुष्ठ रोग काउपचार करने कीएक से अधिकया बहुत सी महत्वपूर्ण दवा उपलब्धहै. अतः कुष्ठ रोगी को इसका इलाज करवा कर पूर्ण स्वस्थ हो सकता है.


कुष्ठ रोग के बारे में कुछ गलत बातें जो कही जाती है :-

कुछ लोगों का विश्वास है कि वंशानुगत कारणों, अनैतिक आचरण, अशुद्ध रक्त, खान-पान की गलत आदतें जैसे सूखी मछली, पूर्वपापकर्म आदि कारणों से कुष्ठ रोग होता है।

कुष्ठ रोग अत्यंत संक्रमणशील है एवं यह संक्रमणशीलता कुरूपता से जुड़ी हुई है। कुष्ठ रोग लाइलाज है।

कुष्ठ रोग प्राय: कुरूपता के साथ जुड़ा हुआ होता है। कुरूपता आने के बाद ही कुष्ठ रोग का निदान किया जा सकता है।

जिन परिवारों में कुष्ठ रोगी हैं, उस परिवार के बच्चों को कुष्ठ रोग होगा ही।

लोग मानते हैं कि कुष्ठरोग केवल कुछ ही परिवारों में फैलता है। यह केवल स्पर्शमात्र से हो जाता है।



 कुष्ठ रोग का देशी व घरेलू उपाय :-



१०० ग्राम आक का दूध, १०० ग्राम कनेर की जड़ की छाल, १०० ग्राम मीठा लेलिया घोट-पीसकर, १००ग्राम तिल लेतेल में पकाए। ५ लीटर गो-मूत्र (तब के बर्तन में) भी इसी में मिलाकर मंदी आंच में पकाए। जब तेल शेष रह जाये तो बोतल में भर ले। इस तेल की मालिश से कोढ़ रोग ठीक हो जाता है।

८ ग्राम हल्दी कीफंकी सुबह शामदो बार ले. हल्दी की गांठको पत्थर परपानी में घीसकरलगए कुष्ठ रोग  में आराम मिलेगा। कुछ दिन तक रोजसेवन करने सेकोढ़ रोग थी होजाता है।

अंकुरित चना लगातारसुबह ३ सालतक खाते रहनेसे कुष्ठ रोग में बहुत फायदाहोता है।

एक चमम्च आंवला केचूर्ण की सुबहशाम फंकी लेनेसे कुष्ठ रोग ठीक होता है।

एक हंडिया ले, जिसमेएक नीचे छोटासा होल करदे. एक गधाहोकर उसमे नीचेएक कटोरी रखकर ऊपर सेहंडिया रख दे. कटोरी होल केनीचे हो. सिरसके बीज हांड़ीमें डाले औरहांड़ी के चारोतरफ उपलों काअलाव जल दे. हांड़ी का मुंहअछि तरह बंदकर दे. हांड़ीग्राम होगी औरउन बीजों मेंसे तेल निकलकर कटोरी मेंआ जायेगा. इसतेल की मालिशसे सफेद्द कोढ़ ठीक और रुक जाताहै. त्वचा का रंगबदलने लगता है. कुछ समय बादत्वचा का रंग सामान्यहो जाता है।

कच्चा बथुआ साफ़धोकर एल किलोरस निकल ले.२५० ग्राम सरसोया टिल केतेल ,इ पकनेरख दे. धीमीआंच पर तबतक खौलते रहेजब तक तेलशेष रह जाये.बथुआ उबालकरसहते गरम पानीसे कोढ़ ग्रस्त अंगोको धो ले. अब ऊपर बनायातेल लगाए . खानेमें बथुआ कासाग खाये, नमकन डेल, बथुआका रस पिए. १०० दिन मेंआप खोद सेछुटकारा पा जाएंगे।

कुष्ठ रोग प्रारम्भ होते ही तुलसीकी पत्तियों कोशहद के साथनियमित रूप सेसेवन करने से  कोस्टरोग नहीं बढ़ताहै. और धीरेधीरे करके कुष्ठ रोग ठीकहो जाता है।

कुष्ठ रोग  से परेशान इंसान को मकोयके पत्तो काकल्क बनाकर, उसपर नियमित लेपकरने से कुष्ठ रोग ठीक हो जाता है।

कोढ़ (KODH) का कारण है- दोविरोही पदार्थो का सेवन. जैसे मछली खाकर दूध पीना, घी और शहदबराबर खा लेना. १०० ग्राम फिटकरीपीसकर तवे परभस्म बन ले. एक चमम्च शहदमें सो रत्तीफिटकरी मिलकर गाजर-मूलीके रस मेंपीना शुरू करदे. १०० ग्रामगंधक  सुधकरके बराबर मात्रमें फूली फिटकरीऔर नीम केतेल में घोटकरकड़वे तेल मेंपकए. जब गाढ़ीगोंड की तरहबन जाये तोइसका लेप कुष्ठके त्वचा परकरे. २ से३ घंटे मेंनीम के पानीसे धो डालेऔर फिटकरी केपानी से नहले. कहते, मिर्च-मसाले, तेज नमक, मिल की चीनी, चाय, कॉफ़ी, शराबऔर चरस गांजासे परहेज करे।

कोढ़  केघाव पर अनारके पत्तो कोपीसकर लगने सेबहुत जयादा फायदा होता है।

गलित कोढ़  होतो नीम के पत्तो और आँवला लेप २५-२५ग्राम लेकर कूटपीसकर चं ले। १० ग्राम की फाकी लेकर शहद चाट ले कुष्ठ रोग ठीक हो जायेगा।

जिस कोढ़  से पानीआता हो, अंगसाद जाये हो उसमे सिरसा की छाल कप पानी से घिसकर लगाए। अगले दिन हिरोल मिले पानी से घाव को साफ करे और वहलेप फिर लगए.नयी त्वचा (TWACHA) फिर लगाए।

तुलसी का स्वरस, घी, चुन औरनागरबेल के पत्तोका स्वरस मिलकर, घोटकर लगने सेगलकर्ण कुष्ठ रोग  ठीक होता है।

तुलसी की २५०गरम पत्तो कोपानी के साथपीसकर रस निकललीजिए. २५० ग्रामटिल के तेलमें उपरोक्त रसडालकर उबाले. रसजाल जाने परतेल को छानकरबोतल में भरलीजिए। इस तेल की मालिश को स्टरोग पर करे, साथ ही सुबहकाल तुलसी की जड़ और सोंठ का चूर्ण को गुनगुने पानी के साथ पीने से कोढ़ जैसा भयंकर रोग भी दूर हो जाता है.

तुलसी की जड़और सोंठ काचूर्ण गरम पानीमें लगातार लेनेसे कुष्ठ रोग ठीकहो जाता है।

तुलसी की जड़का महीन चूर्णबनकर पान कीगिलोरी में भरकरखाने से अधोगामीगलित कुष्ठ रोग ठीक हो जाता है।

तुलसी की पत्तियों से स्वरस में सफ़ेद शक्कर मिलकर पींसे कुष्ठ रोग  में बहुत लाभ होता है।

तुलसी के पत्तो को खाने सेव कुष्ठ पेमलने से कोढ़ रोग ठीक हो जाता है।

त्वचा को नीम के उबले पानी से धोकर शहद का लेप लगने से कुष्ठ रोग ठीक हो जाता है।

नीम और चालमोगराका तेल सामानमात्र में मिलकरकुष्ठ रोग पर लगाए।

परवल, जिमीकन्द की सब्जीलगातार लम्बे समय कहतेरहने से कुष्ठ रोग ठीक होता है।

पुराने कुष्ठ रोग में तुलसी की पत्तियों का रस थोड़े से  गौ-मूत्र के साथ मिलाकर सुबह शामपिए और उसीकी मालिश करे। एक वर्ष तकनियमित करे. कुष्ठ रोग  ठीक हो जाता है।

बबूल की ३टोला छाल लेकरक्वाथ बनाए। उसे रात भर रख दे। सुबह उस पानी को निथरने पर पीने  से कुष्ठ रोग  बहुत ज्यादा फायदा होता है।