koi Diwana kahat hai koi pagal sakjata hai / कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है
हमारे चहिते शायर की कुछ पंक्तियां
कोई दीवाना कहता है
कोई पागल समझता
है
मगर धरती की
बेचैनी को बस
बादल समझता है
मै तुझसे दूर कैसा
हू तू मुझसे
दूर कैसी है
ये मेरा दिल
समझता है या
तेरा दिल समझता
है
मोहबत्त एक अहसासों
की पावन सी
कहानी है
कभी कबीरा दीवाना था
कभी मीरा दीवानी
है
यहाँ सब लोग
कहते है मेरी
आँखों में आसूं
है
जो तू समझे
तो मोती है
जो ना समझे
तो पानी है
मै जब भी
तेज़ चलता हू
नज़ारे छूट जाते
है
कोई जब रूप
गढ़ता हू तो
सांचे टूट जाते
है
मै रोता हू
तो आकर लोग
कन्धा थपथपाते है
मै हँसता हू तो
अक्सर लोग मुझसे
रूठ जाते है
समंदर पीर का
अन्दर लेकिन रो
नहीं सकता
ये आसूं प्यार
का मोती इसको
खो नहीं सकता
मेरी चाहत को
दुल्हन तू बना
लेना मगर सुन
ले
जो मेरा हो
नहीं पाया वो
तेरा हो नहीं
सकता
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