भारत की पहली महिला शिक्षिका सावित्री बाई फुले का परिचय
3 जनवरी को क्रांति ज्योति सावित्री बाई फुले का जन्म दिवस होता है। इस दिन को हम "नारी मुक्त्ति दिवस" के रूप में मनाते हैं।
1 जनवरी , 1848 को उन्होंने पुणे में प्रथम बालिका विद्यालय की स्थापना की।सावित्री बाई ने महिला शिक्षा के लिए जो काम किया निस्संदेह वह क्रांतिकारी काम था। अपने संघर्ष की बदौलत उन्होंने स्त्री शिक्षा का मार्ग प्रशस्त किया। भारत की इस महान नायिका का मानना था कि शिक्षा से ही मनुष्यत्व प्राप्त होता है और पशुत्व समाप्त होता है।
अज्ञान को मिटाकर ज्ञान की ज्योति जलाने वाली सावित्री बाई का एक ही मूलमंत्र था सबको मिले शिक्षा का अधिकार यही है मानव की तरक्की का आधार।
उन्होंने कहा कि............................................
केवल एक ही शत्रु है अपना,
मिलकर निकाल देंगे उसे बाहर,
उसके सिवा कोई शत्रु नहीं,
बताती हूँ उस शत्रु का नाम,
सुनो ठीक से उस शत्रु का नाम,
वह तो है अविद्यारूपी 'अज्ञान'
इस प्रकार सावित्री बाई फुले ने महिला शिक्षा का अलख जगाकर सबके लिए शिक्षा के द्वार खोल दिए।
सावित्री बाई फुले ने अपना पूरा जीवन दबे- कुचले, शोषित- पीड़ित, दीन-हीन लोगों को शोषण से मुक्त्ति तथा अविद्या रूपी अंधकार को मिटाने में लगा दिया। सावित्री बाई जब कन्या पाठशाला में बालिकाओं को पढ़ाने जाया करती थी तो शुद्र-अति शूद्रों और नारी शिक्षा के विरोधी उन पर पत्थर और गोबर फैका करते थे। भारत की शोषित पीड़ित और अधिकारों से वंचित स्त्रियों की स्थिति में सुधार लाने के कार्य में उनका अग्रणीय स्थान है।
1 जनवरी , 1848 को उन्होंने पुणे में प्रथम बालिका विद्यालय की स्थापना की।सावित्री बाई ने महिला शिक्षा के लिए जो काम किया निस्संदेह वह क्रांतिकारी काम था। अपने संघर्ष की बदौलत उन्होंने स्त्री शिक्षा का मार्ग प्रशस्त किया। भारत की इस महान नायिका का मानना था कि शिक्षा से ही मनुष्यत्व प्राप्त होता है और पशुत्व समाप्त होता है।
अज्ञान को मिटाकर ज्ञान की ज्योति जलाने वाली सावित्री बाई का एक ही मूलमंत्र था सबको मिले शिक्षा का अधिकार यही है मानव की तरक्की का आधार।
उन्होंने कहा कि............................................
केवल एक ही शत्रु है अपना,
मिलकर निकाल देंगे उसे बाहर,
उसके सिवा कोई शत्रु नहीं,
बताती हूँ उस शत्रु का नाम,
सुनो ठीक से उस शत्रु का नाम,
वह तो है अविद्यारूपी 'अज्ञान'
इस प्रकार सावित्री बाई फुले ने महिला शिक्षा का अलख जगाकर सबके लिए शिक्षा के द्वार खोल दिए।
सावित्री बाई फुले ने अपना पूरा जीवन दबे- कुचले, शोषित- पीड़ित, दीन-हीन लोगों को शोषण से मुक्त्ति तथा अविद्या रूपी अंधकार को मिटाने में लगा दिया। सावित्री बाई जब कन्या पाठशाला में बालिकाओं को पढ़ाने जाया करती थी तो शुद्र-अति शूद्रों और नारी शिक्षा के विरोधी उन पर पत्थर और गोबर फैका करते थे। भारत की शोषित पीड़ित और अधिकारों से वंचित स्त्रियों की स्थिति में सुधार लाने के कार्य में उनका अग्रणीय स्थान है।