भारत का त्योहार - दशहरा
विजय दशमी का अर्थ:- विजय के उपलक्ष्य में मनाये जाने वाला उत्सव या त्योहार।
हमारे देश भारत में दशहरा को दुर्गा पूजा के नाम से भी जाना जाता है। इस त्योहार वर्षा ऋतु के अंत में संपूर्ण भारत वर्ष में मनाया जाता है। नवरात्र में मूर्ति पूजा में पश्चिम बंगाल का कोई सानी नहीं है जबकि गुजरात में खेला जाता है
दशहरा क्यों मनाया जाता है :-
यह विजय की घटना आज से हजारों साल पहले त्रेता युग की हैं। आपने राम औऱ रावण के युद्ध की कहानी तो सुनी और किताबों में जरुर पढ़ी हैं। लगभग देश के हर शहर में रामलीला भी होती है। अश्विन शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि के दिन ही, मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान राम ने रावण का वध करके विजय प्राप्त की थी। बस तभी से इस दिन को विजयोत्सव के रूप में मनाते हैं। इसी उत्सव को'दशहरा' भी कहते हैं,क्योंकि इसी दिन दस मुख वाला राक्षस मारा गया था।
यह दिवस 'शस्त्र पूजन उत्सव' के रूप में भी मनाया जाता हैं। इस दिन क्षत्रिय औऱ वीर लोग अपने अस्त्र-शस्त्र की सफाई करके ,वीरता की देवी भगवती की उपासना की जाती हैं।
इस दिन के पीछे एक और कहानी :-
प्राचीन काल में महिषासुर नामक एक राक्षस के अत्याचारों से तीनों लोकों के प्राणी अत्यंत दुखी हो गए औऱ' त्राहिमाम् त्राहिमाम् ' की पुकार करने लगे। जब उनसे महिषासुर के अत्याचार नही सहन हो सके तो वे दौड़े-दौड़े ब्रह्मा जी के पास पहुँचे औऱ उनसे रक्षा के लिए प्रार्थना करने लगे । इस पर ब्रह्मा जी ने उनसे कहा वे सब लोग संगठित होकर एक प्रबल शक्ति का र्निमाण करें, उससे महिषासुर का वध होगा।अतः सभी देवताओ की प्रार्थना से माँ दुर्गा की सृष्टि हुई औऱ सभी ने उन्हे अपनी -अपनी शक्तियों से सुसज्जित किया।
भगवती दुर्गा ने वनराज सिंह को अपना वाहन बनाया औऱ महिषासुर से नौ दिन तक युद्ध करके उसका संहार किया। इस लिए अश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर नवमी तक नवरात्रि उत्सव मनाते हैं औऱ दशमी को विजयोत्सव मनाया जाता हैं।
अतः इस उत्सव से हमें यह शिक्षा मिलती हैं कि 'अन्यायी औऱ अत्याचारी का संहार मिलजुल कर संगठित शक्ति से ही किया जा सकता हैं।
हमारे देश भारत में दशहरा को दुर्गा पूजा के नाम से भी जाना जाता है। इस त्योहार वर्षा ऋतु के अंत में संपूर्ण भारत वर्ष में मनाया जाता है। नवरात्र में मूर्ति पूजा में पश्चिम बंगाल का कोई सानी नहीं है जबकि गुजरात में खेला जाता है
दशहरा क्यों मनाया जाता है :-
यह विजय की घटना आज से हजारों साल पहले त्रेता युग की हैं। आपने राम औऱ रावण के युद्ध की कहानी तो सुनी और किताबों में जरुर पढ़ी हैं। लगभग देश के हर शहर में रामलीला भी होती है। अश्विन शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि के दिन ही, मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान राम ने रावण का वध करके विजय प्राप्त की थी। बस तभी से इस दिन को विजयोत्सव के रूप में मनाते हैं। इसी उत्सव को'दशहरा' भी कहते हैं,क्योंकि इसी दिन दस मुख वाला राक्षस मारा गया था।
यह दिवस 'शस्त्र पूजन उत्सव' के रूप में भी मनाया जाता हैं। इस दिन क्षत्रिय औऱ वीर लोग अपने अस्त्र-शस्त्र की सफाई करके ,वीरता की देवी भगवती की उपासना की जाती हैं।
इस दिन के पीछे एक और कहानी :-
प्राचीन काल में महिषासुर नामक एक राक्षस के अत्याचारों से तीनों लोकों के प्राणी अत्यंत दुखी हो गए औऱ' त्राहिमाम् त्राहिमाम् ' की पुकार करने लगे। जब उनसे महिषासुर के अत्याचार नही सहन हो सके तो वे दौड़े-दौड़े ब्रह्मा जी के पास पहुँचे औऱ उनसे रक्षा के लिए प्रार्थना करने लगे । इस पर ब्रह्मा जी ने उनसे कहा वे सब लोग संगठित होकर एक प्रबल शक्ति का र्निमाण करें, उससे महिषासुर का वध होगा।अतः सभी देवताओ की प्रार्थना से माँ दुर्गा की सृष्टि हुई औऱ सभी ने उन्हे अपनी -अपनी शक्तियों से सुसज्जित किया।
भगवती दुर्गा ने वनराज सिंह को अपना वाहन बनाया औऱ महिषासुर से नौ दिन तक युद्ध करके उसका संहार किया। इस लिए अश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर नवमी तक नवरात्रि उत्सव मनाते हैं औऱ दशमी को विजयोत्सव मनाया जाता हैं।
अतः इस उत्सव से हमें यह शिक्षा मिलती हैं कि 'अन्यायी औऱ अत्याचारी का संहार मिलजुल कर संगठित शक्ति से ही किया जा सकता हैं।