नवरात्रि क्यों? केसे? और किस लिए मनाये जाते हैं?

नवरात्रि का हमारे जीवन में बहुत ही महत्व है। हिन्दू समाज में ये बड़े ही जोरों से मनाये जाते हैं।

नवरात्रि/नवरात्री/नवरात्र :-

पंडित रामप्रसाद के अनुसार :- आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से नवमी तिथि तक का समय हम एक विशेष नाम से पुकारते हैं। कुछ लोग इसको नवरात्री कहते हैं, कुछ नवरात्रि और कुछ नवरात्र।



यह शब्द समास (संक्षिप्तीकरण) से बना है। पहला शब्द है "नव" तथा दूसरा शब्द है "रात्रि" अर्थात नव + रात्रि।

अब यह दूसरा शब्द "नव" क्या बताता है उसकी बात करते हैं। "नव" शब्द की व्याख्या में विद्वानों के दो मत हैं।

पहला मत -
"नव" शब्द को संख्यावाचक न बताकर (इनका तर्क  नवरात्रि कभी 8 दिन के होते हैं और कभी 9 और 10 दिन के) इसका अर्थ नवीन बताता है
दूसरा मत-
"नव" शब्द संख्यावाचक है
रात्रि शब्द का अर्थ है  रात से, इसमें किसी को कोई संदेह नहीं होना चाहिए । थोड़ा और स्पष्ट करने के लिए बता दूं की 24 घंटे में तीन तीन घंटे के आठ प्रहर होते हैं जिसमें से प्रथम चार प्रहर (सूर्योदय से) दिन और अंतिम चार प्रहर रात कहलाते हैं।

"नवानां रात्रीणां समाहारः" अर्थात नौ रात्रियों का समूह इस प्रकार व्याख्या करके द्वन्द समास लगाकर "नवरात्र" शब्द को पूर्णतः शुद्ध बताता है जबकि नवरात्रि/नवरात्री शब्द को त्रुटिपूर्ण बताता है। यह मत  कहता है की हम नौ रात्रि शक्ति की पूजा करते हैं और इस "नौ रात्रि के समूह" को किसी नाम से पुकारना चाहते हैं अतः नवरात्र कहकर पुकारते हैं।


और
"नित नवीन रात्रि दर्शनमेव नवरात्रि संज्ञितः" अर्थात रात्रि जो नित्य नवीन रूप में दर्शन दे इस प्रकार व्याख्या करके कर्मधारय समास लगाकर "नवरात्रि" शब्द को ही पूर्णतः शुद्ध बताता है। यह मत कहता है दुर्गा पूजा में उनके नामो के अनुसार नित्य नयी देवियों का आविर्भाव माना गया है, और नित्य नए रूप के आविर्भाव के कारण ही इसे नव अर्थात नयी रात्रि के रूप में जाना या पूजित होता है।


कई लोगों के मत नवरात्री शब्द को पूर्णतः अशुद्ध बताते हैं। लेकिन इस बात हम विचार नहीं करेंगे क्योंकि हम सभी जनते हैं कि हर बात के दो पहलू होते हैं ।