बच्चा प्लान करने से पहले
माँ बनने का निर्णय सिर्फ एक स्त्री का या सिर्फ उसके पति का ही हो अथवा उसके समस्त परिवारजनों की सहमति हो, आज यह एक गम्भीर है। यदि गर्भाधारण से लेकर शिशु जन्म तक की समस्त स्थितियों को सही पाया जाय, तो कोई भी स्त्री माँ बनने का निर्णय ले सकती है।
माँ बनना एक सुखद अनुभूति है, लेकिन उतनी ही बड़ी जिम्मेदारी भी। अतः आवष्यक है कि विवाह के बाद पति-पत्नी आपस में विचार-विमर्ष करके ही बच्चा प्लान करें। माँ का शरीर एक ऐसी क्यारी है, जहाँ बच्चे का बीज रोपित किया जाता है और भरपूर खाद-पानी देकर इस बीज को विकसित किया जा सकता है। आजकल महिलायें भी नौकरी-पेषा हैं। अतः जब बच्चा प्लान करें, तो यह देख लें कि आप उसको समय दे पायेंगी ? इसके अलावा प्रष्न आता है, कि पति-पत्नी के विवाह के बाद आपस में ही सेटिंग नहीं हो पाई, ऊपर से महिला गर्भवती हो गई। ऐसे में कई महिलायें गर्भपात कराने डाॅक्टरों के चक्कर लगाने लगती हैं। सवाल यह उठता है कि शारीरिक रूप से एक महिला अपने आपको गर्भधारण के लिए कैसे तैयार करें। किन-किन बातों का ध्यान रखे ताकि उसे जो बच्चा हो, तो वह पूर्ण हो, ज्ञानवान हो, वह स्वस्थ और सुन्दर हो।
स्वयं को परखें
स्वयं को परखने का अर्थ स्वयं के शरीर व उसकी क्रिया को जानने से है, वैसे तो शरीर का सामान्य ज्ञान सभी को होना चाहिए पर प्रजनन का ज्ञान हर स्त्री-पुरुष के लिए आवष्यक है, खासकर उन्हें जो वैवाहिक सूत्र में बँधने जा रहे हों, या बँध चुके हों, हमारे देष में कैरियर में विष्वास रखने वाले षिक्षित, स्मार्ट, आधुनिक युवा भी प्रजनन के विषय में बहुत सीमित जानकारी रखते हैं। से*स और प्रजनन से जुड़ी स्वास्थ्य समस्या उत्पन्न होने के बाद ही लोग जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं। कुछ दिन पहले दफ्तर में कार्यरत महिलाओं हेतु आयोजित एक स्वास्थ्य कार्यक्रम में एक सहज सवाल पूछा गया कि मासिकधर्म क्यों व किस प्रकार आता है ? मगर कोई भी इसका उत्तर नहीं दे पाई।
मसिकधर्म, एमसी या पीरियड रजोकाल में हर माह होने वाली एक हारमोन नियंत्रित क्रिया है। हर माह 4-5 दिनों का रक्तस्त्राव रुकने के साथ-साथ जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं। कुछ दिन पहले दफ्तर में कार्यरत महिलाओं हेतु आयोजित एक स्वास्थ्य कार्यक्रम में एक सहज सवाल पूछा गया कि मासिकधर्म क्यों व किस प्रकार आता है ? मगर कोई भी इसका उत्तर नहीं दे पाई।
मसिकधर्म, एमसी या पीरियड रजोकाल में हर माह होने वाली एक हारमोन नियंत्रित क्रिया है। हर माह 4-5 दिनों का रक्तस्त्राव रुकने के साथ-साथ गर्भाषय की अंदरूनी परत क्रमषः मोटी व परिवर्तित होती रहती है। 4 सप्ताह के अंत में यह अपने आप बिखर जाती है जिससे रक्तस्त्राव होता है, जो योनि मार्ग से बाहर आता है, जिसे हम एमसी या मसिकधर्म कहते हैं। कन्या में मसिकधर्म नियमित होना यह दर्षाता है कि उसके प्रजनन अंगों की रचना व क्रिया सामान्य है। मसिकधर्म में होने वाले हारमोन के परिवर्तन प्रतिमाह अंड का फलीकरण, विकास व विमोचन भी करते हैं। इस सम्पूर्ण क्रिया का लक्ष्य गर्भाधान होता है, जब गर्भ ठहर जाता है, तो गर्भाषय में विकसित मोटी परत गर्भ की सुरक्षा व पोषाहार प्रदान करने के काम आती है, इसके बाद मसिकधर्म रुक जाता है।
गर्भधारण करना स्त्री के शरीर में पूर्ण विकसित व विमोचित अंड के शुक्राणु से मिलाप के कारण होता है। पुरुष के साथ सहवास अर्थात् संभोग के कारण शुक्राणु वीर्य के माध्यम से स्त्री के शरीर में पहुँचते हैं, जिस महिला में माहवारी नियमित है उसके शरीर में अंडविमोचन क्रिया मध्य मासिक यानी 14 वें दिन के आसपास होती हैं, अंडविमोचन के 13 वें से 18 वें दिन के दौरान सहवास करने से गर्भ ठहरने की संभावना रहती है, अंडविमोचन की जानकारी गर्भ को रोकने या गर्भधारण हेतु कोषिष करने दोनों में उपयोगी हैं।
हमारा यौन जीवन
यह अत्यंत निजी होने के साथ-साथ एक मूलभूत विषय है। परन्तु हमारी विडंबना यह है कि इतना महत्वपूर्ण होते हुए भी इसका ज्ञान हमें परिवार या षिक्षा पाठ्यक्रम के माध्यम से नहीं मिलता है। यौन संबंधों की समस्याओं व यौन रोगों की बढ़ती भीषणता वाले इस काल में भी यौन षिक्षा के रास्ते अभी तक खुले नहीं हैं। विवाहित सहेलियाँ व मित्र आदि इस दिषा में कुछ सहायक हो सकते हैं। टीवी पर दिखाई जाने वाली बातें मार्गदर्षन करने की बजाय उत्तेजना पैदा करने वाली हैं। ऐसे में से*स क्या है? इसमें सही व गलत क्या है? सुरक्षित से*स क्या है? आदि बातों का ज्ञान हमें से*स संबंधी पुस्तकों के माध्यम से ही होता है, इंटरनेट से भी इस संबंध में जानकारी प्राप्त हो सकती है।
विवाह के पश्चात् यौन संबंध यानी से*स कब होना चाहिए, यह एक अत्यंत गोपनीय प्रष्न है, एक-दूसरे को समझे व मन से तैयार हुए बिना, एक-दूसरे से प्यार हुए बिना इसे करना या स्वयं को दूसरे पर थोपना अनैतिक, अमान्य व बलात है। स्वयं को समर्पित करते समय स्त्री हमेषा प्यार, सुरक्षा व विष्वास चाहती है। चरम सुख तक पहुँचने में उसे समय लगता है, इसके विपरीत पुरुषों में इसके प्रति एक सीधापन व जल्दबाजी होती है क्योंकि उत्तेजित होने में उन्हें कम समय लगता है। बिना किसी भावात्मक तैयारी व अपनेपन के यह कर पाना पुरुषों के लिए स्वाभाविक क्रिया है। मगर भावात्मक दृष्टि से बिना जुडे़ इसे कर पाना स्त्री के लिए अस्वाभाविक एवं कठिन है। दोनों पक्षों में इस प्रकार की भिन्नता होते हुए भी यौन संबंध तब ही मधुर बन सकते हैं, जब दोनों एक-दूसरे की कद्र करें, समझें व सुविधा -असुविधा का पूर्ण ध्यान रखें।
विवाह के पश्चात् एक बार यौन संबंध स्थापित होने के बाद यह क्रिया सक्रिय रूप से दोनों की इच्छा व आवष्यकतानुसार चलती रहती है। इस सक्रिय यौन काल में महिलाओं में जनन अंग में संक्रमण एक आम समस्या है। कुठ महिलाओं में प्रजनन अंग की रचना ही इस प्रकार से होती है कि उनमें संक्रमण जल्दी होता है। मूत्राषय, मूत्रनली व योनिमार्ग के संक्रमण से बहुत-सी महिलाएँ लंबे समय तक परेषान रहती है व चिकित्सा कराती रहती है। संक्रमण से बचाव के लिए आवष्यक है कि पति-पत्नी स्वस्थ हों, दोनों के वस्त्र, अंग, हाथ आदि स्वच्छ हो और से*स को स्वच्छ व सुरक्षित प्रकार से करते हुए उसका आनन्द उठाया जाए। सहवास के बाद अंगों को स्वच्छ पानी से साफ करना व स्वच्छ अंगवस्त्र पहनना संक्रमण से बचने हेतु जरूरी है।
प्रथम बार माँ बनने की तैयारी
आज परिवार नियोजन के इतने साधन मौजूद हैं कि ज्यादातर युगल पूरी योजना व तैयारी के बाद ही बच्चा पैदा करते हैं। आज के फ्यूचर पेरेंट्स तो भावी संतान के जन्म की तारीख, महीना और यहाँ तक कि उनकी क्षा तक को ध्यान में रख कर डिलीवरी ध्यान करते हैं।
दरअसल छोअे परिवार, नौकरी पेषा महिलाएँ और उस पर सीमित संसाधनों ने परिवार के आकार पर और हमारी सोच पर बहुत असर डाला है। हर तरह से सोच-विचार कर के षिषु के आगमन की तैयारी की बात अब अजीब नहीं लगती। इसलिए अगर आप भी पहली बार माँ बनने की सोच रही हैं, तो कुछ खासबिन्दुओं पर अच्छी तरह सोच-विचार करने के बाद ही फैसला करें। ऐसा करने पर गर्भावस्था आपके लिए सुखद अनुभूति से भरी होगी और संतान का जन्म आपके जीवन का सबसे सुखद क्षण बनेगा।
माँ बनना एक सुखद अनुभूति है, लेकिन उतनी ही बड़ी जिम्मेदारी भी। अतः आवष्यक है कि विवाह के बाद पति-पत्नी आपस में विचार-विमर्ष करके ही बच्चा प्लान करें। माँ का शरीर एक ऐसी क्यारी है, जहाँ बच्चे का बीज रोपित किया जाता है और भरपूर खाद-पानी देकर इस बीज को विकसित किया जा सकता है। आजकल महिलायें भी नौकरी-पेषा हैं। अतः जब बच्चा प्लान करें, तो यह देख लें कि आप उसको समय दे पायेंगी ? इसके अलावा प्रष्न आता है, कि पति-पत्नी के विवाह के बाद आपस में ही सेटिंग नहीं हो पाई, ऊपर से महिला गर्भवती हो गई। ऐसे में कई महिलायें गर्भपात कराने डाॅक्टरों के चक्कर लगाने लगती हैं। सवाल यह उठता है कि शारीरिक रूप से एक महिला अपने आपको गर्भधारण के लिए कैसे तैयार करें। किन-किन बातों का ध्यान रखे ताकि उसे जो बच्चा हो, तो वह पूर्ण हो, ज्ञानवान हो, वह स्वस्थ और सुन्दर हो।
स्वयं को परखें
स्वयं को परखने का अर्थ स्वयं के शरीर व उसकी क्रिया को जानने से है, वैसे तो शरीर का सामान्य ज्ञान सभी को होना चाहिए पर प्रजनन का ज्ञान हर स्त्री-पुरुष के लिए आवष्यक है, खासकर उन्हें जो वैवाहिक सूत्र में बँधने जा रहे हों, या बँध चुके हों, हमारे देष में कैरियर में विष्वास रखने वाले षिक्षित, स्मार्ट, आधुनिक युवा भी प्रजनन के विषय में बहुत सीमित जानकारी रखते हैं। से*स और प्रजनन से जुड़ी स्वास्थ्य समस्या उत्पन्न होने के बाद ही लोग जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं। कुछ दिन पहले दफ्तर में कार्यरत महिलाओं हेतु आयोजित एक स्वास्थ्य कार्यक्रम में एक सहज सवाल पूछा गया कि मासिकधर्म क्यों व किस प्रकार आता है ? मगर कोई भी इसका उत्तर नहीं दे पाई।
मसिकधर्म, एमसी या पीरियड रजोकाल में हर माह होने वाली एक हारमोन नियंत्रित क्रिया है। हर माह 4-5 दिनों का रक्तस्त्राव रुकने के साथ-साथ जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं। कुछ दिन पहले दफ्तर में कार्यरत महिलाओं हेतु आयोजित एक स्वास्थ्य कार्यक्रम में एक सहज सवाल पूछा गया कि मासिकधर्म क्यों व किस प्रकार आता है ? मगर कोई भी इसका उत्तर नहीं दे पाई।
मसिकधर्म, एमसी या पीरियड रजोकाल में हर माह होने वाली एक हारमोन नियंत्रित क्रिया है। हर माह 4-5 दिनों का रक्तस्त्राव रुकने के साथ-साथ गर्भाषय की अंदरूनी परत क्रमषः मोटी व परिवर्तित होती रहती है। 4 सप्ताह के अंत में यह अपने आप बिखर जाती है जिससे रक्तस्त्राव होता है, जो योनि मार्ग से बाहर आता है, जिसे हम एमसी या मसिकधर्म कहते हैं। कन्या में मसिकधर्म नियमित होना यह दर्षाता है कि उसके प्रजनन अंगों की रचना व क्रिया सामान्य है। मसिकधर्म में होने वाले हारमोन के परिवर्तन प्रतिमाह अंड का फलीकरण, विकास व विमोचन भी करते हैं। इस सम्पूर्ण क्रिया का लक्ष्य गर्भाधान होता है, जब गर्भ ठहर जाता है, तो गर्भाषय में विकसित मोटी परत गर्भ की सुरक्षा व पोषाहार प्रदान करने के काम आती है, इसके बाद मसिकधर्म रुक जाता है।
गर्भधारण करना स्त्री के शरीर में पूर्ण विकसित व विमोचित अंड के शुक्राणु से मिलाप के कारण होता है। पुरुष के साथ सहवास अर्थात् संभोग के कारण शुक्राणु वीर्य के माध्यम से स्त्री के शरीर में पहुँचते हैं, जिस महिला में माहवारी नियमित है उसके शरीर में अंडविमोचन क्रिया मध्य मासिक यानी 14 वें दिन के आसपास होती हैं, अंडविमोचन के 13 वें से 18 वें दिन के दौरान सहवास करने से गर्भ ठहरने की संभावना रहती है, अंडविमोचन की जानकारी गर्भ को रोकने या गर्भधारण हेतु कोषिष करने दोनों में उपयोगी हैं।
हमारा यौन जीवन
यह अत्यंत निजी होने के साथ-साथ एक मूलभूत विषय है। परन्तु हमारी विडंबना यह है कि इतना महत्वपूर्ण होते हुए भी इसका ज्ञान हमें परिवार या षिक्षा पाठ्यक्रम के माध्यम से नहीं मिलता है। यौन संबंधों की समस्याओं व यौन रोगों की बढ़ती भीषणता वाले इस काल में भी यौन षिक्षा के रास्ते अभी तक खुले नहीं हैं। विवाहित सहेलियाँ व मित्र आदि इस दिषा में कुछ सहायक हो सकते हैं। टीवी पर दिखाई जाने वाली बातें मार्गदर्षन करने की बजाय उत्तेजना पैदा करने वाली हैं। ऐसे में से*स क्या है? इसमें सही व गलत क्या है? सुरक्षित से*स क्या है? आदि बातों का ज्ञान हमें से*स संबंधी पुस्तकों के माध्यम से ही होता है, इंटरनेट से भी इस संबंध में जानकारी प्राप्त हो सकती है।
विवाह के पश्चात् यौन संबंध यानी से*स कब होना चाहिए, यह एक अत्यंत गोपनीय प्रष्न है, एक-दूसरे को समझे व मन से तैयार हुए बिना, एक-दूसरे से प्यार हुए बिना इसे करना या स्वयं को दूसरे पर थोपना अनैतिक, अमान्य व बलात है। स्वयं को समर्पित करते समय स्त्री हमेषा प्यार, सुरक्षा व विष्वास चाहती है। चरम सुख तक पहुँचने में उसे समय लगता है, इसके विपरीत पुरुषों में इसके प्रति एक सीधापन व जल्दबाजी होती है क्योंकि उत्तेजित होने में उन्हें कम समय लगता है। बिना किसी भावात्मक तैयारी व अपनेपन के यह कर पाना पुरुषों के लिए स्वाभाविक क्रिया है। मगर भावात्मक दृष्टि से बिना जुडे़ इसे कर पाना स्त्री के लिए अस्वाभाविक एवं कठिन है। दोनों पक्षों में इस प्रकार की भिन्नता होते हुए भी यौन संबंध तब ही मधुर बन सकते हैं, जब दोनों एक-दूसरे की कद्र करें, समझें व सुविधा -असुविधा का पूर्ण ध्यान रखें।
विवाह के पश्चात् एक बार यौन संबंध स्थापित होने के बाद यह क्रिया सक्रिय रूप से दोनों की इच्छा व आवष्यकतानुसार चलती रहती है। इस सक्रिय यौन काल में महिलाओं में जनन अंग में संक्रमण एक आम समस्या है। कुठ महिलाओं में प्रजनन अंग की रचना ही इस प्रकार से होती है कि उनमें संक्रमण जल्दी होता है। मूत्राषय, मूत्रनली व योनिमार्ग के संक्रमण से बहुत-सी महिलाएँ लंबे समय तक परेषान रहती है व चिकित्सा कराती रहती है। संक्रमण से बचाव के लिए आवष्यक है कि पति-पत्नी स्वस्थ हों, दोनों के वस्त्र, अंग, हाथ आदि स्वच्छ हो और से*स को स्वच्छ व सुरक्षित प्रकार से करते हुए उसका आनन्द उठाया जाए। सहवास के बाद अंगों को स्वच्छ पानी से साफ करना व स्वच्छ अंगवस्त्र पहनना संक्रमण से बचने हेतु जरूरी है।
प्रथम बार माँ बनने की तैयारी
आज परिवार नियोजन के इतने साधन मौजूद हैं कि ज्यादातर युगल पूरी योजना व तैयारी के बाद ही बच्चा पैदा करते हैं। आज के फ्यूचर पेरेंट्स तो भावी संतान के जन्म की तारीख, महीना और यहाँ तक कि उनकी क्षा तक को ध्यान में रख कर डिलीवरी ध्यान करते हैं।
दरअसल छोअे परिवार, नौकरी पेषा महिलाएँ और उस पर सीमित संसाधनों ने परिवार के आकार पर और हमारी सोच पर बहुत असर डाला है। हर तरह से सोच-विचार कर के षिषु के आगमन की तैयारी की बात अब अजीब नहीं लगती। इसलिए अगर आप भी पहली बार माँ बनने की सोच रही हैं, तो कुछ खासबिन्दुओं पर अच्छी तरह सोच-विचार करने के बाद ही फैसला करें। ऐसा करने पर गर्भावस्था आपके लिए सुखद अनुभूति से भरी होगी और संतान का जन्म आपके जीवन का सबसे सुखद क्षण बनेगा।