वेदों में बताए देवता कितने हैं ?
ईश्वर सच्चिदानंदस्वरूप, निराकार, सर्वशक्तिमान, न्यायकारी, दयालु, अजन्मा, अनंत, निर्विकार, अनादि, अनुपम, सर्वाधार, सर्वेश्वर, सर्वव्यापक, सर्वांतर्यामी, अजर, अमर, अभय, नित्य, पवित्र और सृष्टिकर्ता है, उसी की उपासना करने योग्य है।
ओउम्
ओउम्
वेदों में बताए देवता god described by vedas by vedicpress वैदिक देवता
परमपिता परमात्मा ने वेदों में देवता के बारे में जो भी मनुष्य को
बताया है उस सत्य पूर्ण वैज्ञानिक (scientific) ज्ञान को गुरु-
शिष्य संवाद के द्वारा सभी मनुष्यों के हित के लिए बताया
गया है।
वेदों में बताए देवता god described by vedas
शिष्य – देवता किसे कहते हैं ?
गुरु – देवता उसे कहते हैं जो प्रकाश करे ,जो अपने स्वार्थ के लिए
कोई काम न करे ,
सो देवता है । देवता दो प्रकार के होते हैं –
* एक -जड़
* दूसरा -चेतन ।परमपिता परमात्मा ने वेदों में देवता के बारे में जो भी मनुष्य को
बताया है उस सत्य पूर्ण वैज्ञानिक (scientific) ज्ञान को गुरु-
शिष्य संवाद के द्वारा सभी मनुष्यों के हित के लिए बताया
गया है।
वेदों में बताए देवता god described by vedas
शिष्य – देवता किसे कहते हैं ?
गुरु – देवता उसे कहते हैं जो प्रकाश करे ,जो अपने स्वार्थ के लिए
कोई काम न करे ,
सो देवता है । देवता दो प्रकार के होते हैं –
* एक -जड़
शिष्य – जड़ देवता कितने हैं ?
गुरु – जड़ देवता 33 कोटि ( 33 प्रकार ) के वेदों ने बताए है। मूर्ख
पौराणिक पंडो ने कोटि को करोड़ कहकर 33 करोड़ देवता
बना डाले।
शिष्य – कौन – कौन से हैं ?
गुरु – 8 वसु , 11 रुद्र , 12 आदित्य , 1 यज्ञ और 1 विद्युत ।
शिष्य – आठ वसु कौन से हैं ?
गुरु – सूर्य , चन्द्रमा , नक्षत्र , पृथ्वी , जल , अग्नि , वायु और
आकाश हैं ।
शिष्य – 11 रुद्र कौन से हैं ?
गुरु – दस प्राण , ग्यारहवाँ जीवात्मा हैं । इनके निकाल जाने से
लोग रोते हैं ।
शिष्य – बारह आदित्य कौन से हैं ?
गुरु – बारह मास ( महीने ) ।
शिष्य – चेतन देवता कौन से हैं ?
गुरु – एक तो देवों का देव परमात्मा है , जो महादेव(mahadev)
कहलाता है । दूसरे जो पूर्ण ज्ञानी पुरुष हैं , वे भी देवता कहलते हैं
।
इस प्रकार वेदों को अनुसार यह 33 जड़ देवता कहे गए है न कि 33
करोड़ साकार भगवान बनाए गए देवता बताए गए है। ये लीला
तो दुष्ट पापी ईश्वर द्रोही पंडो की रची हुई है। आप सभी इन
दुष्टों की अवैज्ञानिक , अधार्मिक व्यर्थ बातों को मानकर
कृतघ्न(ungrateful) न बने क्योंकि जिस ईश्वर ने हम सब को रचा
है तो उस सर्वज्ञ(omniscient) की उपासना न करके हम सभी
पाप के भागी बन रहे है। पूर्ण-वैज्ञानिक सत्य-सनातन-वैदिक-
धर्म को अपनाकर हम अपना स्वयं का , परिवार, समाज, राष्ट्र
और उसके बाद सारे विश्व की भौतिक व आध्यात्मिक उन्नति
करने में सहायक हो सकेंगे। वेदों का ज्ञान किसी एक जाति,
समाज या राष्ट्र के लिए नहीं बल्कि पूरी सृष्टि के लिए है। अत:
सारे विश्व में वैदिक धर्म(vedic dharma) के इस सत्य स्वरूप को
फैलाने का हम सब का कर्तव्य है। आओ हम सब मिलकर अपने
कर्तव्य(Duty) का सही से निर्वहन करें।