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हरियाणवी कॉलेज के टाइम की बात / Vo College ki yaaden Bhi Gani staven Sa

वो कॉलेज के टाइम में ढ़ाबे की दाल खाणा याद आगया ---

कर्मबीर कालिज में पढ़ता था, एक बार उसे आस्ट्रेलिया का ट्यूरिस्ट वीजा मिल गया । वहां जाकर उसने एक भारतीय छात्र के कमरे में डेरा डाल लिया । उस लड़के ने उसे ठहरा तो लिया पर बता दिया कि वो अपना खाना खुद बना लिया करे ।


कर्मबीर ने पहले दिन दाल बनाई अर उस लड़के को भी खिलाई । उसने कहा - "अरै करमे , तेरे हाथ की दाल खा-कै तै मन्नै सत्तू के ढाबा याद आ-गई "।
फिर तो रोज दाल ही बनने लगी - सब्जी खरीदने में तो कर्मबीर के पैसे खर्च होते थे । किचन में कई डिब्बों में दालें तो पड़ी ही थी -

अच्छी पतली-सी दाल बना कर पीने भी लगा। फिर महीने भर बाद उस लड़के ने देखा कि जो

दालें वो खुद पहले भारत से खरीद कर लाया था, वे तो इस कर्मबीर की वजह से खत्म होने को हैं ।

उसने कर्मबीर को टोक दिया कि भाई कभी सब्जी भी खरीद कर बना लिया कर ।

कर्मबीर ने जवाब दिया कि उसको तो सिर्फ दालें ही पसंद हैं ।

उसके साथी ने जवाब दिया : " तै न्यूं कर कि इस कमरे में हळ चला दे और थोड़ी सी दाल बो दे"------